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सिसकती रातें | हिंदी कविता

सिसकती रातें  बंद कमरे से आ रही है एक आवाज, किसी के सिसकने की, कभी चूड़ियों के खन खन की, कभी पायलों के छम छम की, सन्नाटा भरी उस रात में , झुनझुन करते झींगुरों की आवाज साथ दे रही, उन सिसकती आहटों का , कोई आहत है किसी बात से शायद जो बयां नहीं कर पा रही खुद ही दिल में समेटे सिसकते हुए  प्रकृति को जता रही। चाह कर भी मैं पूछ न सका उससे  सिसकती हुई वो रात में , आखिर क्या बता रही। योगेश पौराणिक