सिसकती रातें
बंद कमरे से आ रही है एक आवाज,
किसी के सिसकने की,
कभी चूड़ियों के खन खन की,
कभी पायलों के छम छम की,
सन्नाटा भरी उस रात में ,
झुनझुन करते झींगुरों की आवाज साथ दे रही,
उन सिसकती आहटों का ,
कोई आहत है किसी बात से शायद
जो बयां नहीं कर पा रही
खुद ही दिल में समेटे सिसकते हुए
प्रकृति को जता रही।
चाह कर भी मैं पूछ न सका उससे
सिसकती हुई वो रात में ,
आखिर क्या बता रही।
योगेश पौराणिक
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