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हिन्दी एक शब्द के अनेक अर्थ | अनेकार्थ शब्द | Hindi mppsc,upsc ,ssc ,railway ,bank ,cds mpsi and class 1 to 12


अंक - गोद, चिन्ह , नाटक का अंक , संध्या ,पुण्य , अध्याय 

अंग - भाग , एक देश , शरीर का कोई हिस्सा 

अनंत - अंतहीन , आकाश , विष्णु 

अर्क - सूर्य, काढ़ा या तत्व, आक का पौधा 

अर्थ - धन, मतलब, कारण, लिए , प्रयोजन 

अक्ष - आँख, सर्प, शान, धुरी, रथ, आत्मा, कील, मंडल 

अज - बकरा, मेष राशि , दशरथ के पिता, ब्रम्हा ,शिव , जीव 

अहि - सूर्य , सांप , कष्ट 

अक्षर - ब्रम्हा, विष्णु , 'अ ' आदि अक्षर , शिव ,धर्म , मोक्ष 

अच्युत - अविनाशी , स्थिर , कृष्ण , विष्णु 

आम - आम का फल , सर्वसाधारण ,सामान्य 

अंतर - अवधि , आकाश , अवसर , मध्य , छिद्र 

अरुण - लाल, सूर्य , सूर्य का सारथि, सिन्दूर , वृक्ष , संध्या ,राग 

अमृत - जल , दूध , अन्न , पारा 

अतिथि - मेहमान , साधू , यात्री, अपरिचित 

अपवाद - नियम के विरुद्ध , कलंक 

आपत्ति - मुसीबत , एतराज 

अलि - भौंरा , पंक्ति , सखी 

अशोक - शोक रहित , एक प्रसिद्ध राजा , एक वृक्ष 

अयन - घर, मार्ग, स्थान, आधा वर्ष 

आराम - बाग़ , विश्राम, शांति 

आली - पंक्ति, सखी 

अर्थी - इच्छुक , मुर्दा, रखने का तख्ता, याचक 

अचल - पर्वत , स्थिर 

अवस्था - आयु , दशा 

ईश्वर - मालिक, धनी , परमात्मा 

इंदु - चन्द्र, कपूर,नाम 

उत्तर - एक दिशा , जबाब , हल 

कंद - मिश्री ,वह जड़ हो गूदेदार और विना रेशे के हो 

कनक - धतूरा,  सोना 


                                                                                     



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जन्म कुंडली में इन भावों में बैठा केतु जातक को पूर्वानुमान या पूर्वाभासी बना देता है : जन्म कुंडली में केतु को शुभ तथा छाया  ग्रह की संज्ञा दी गई है किंतु पाप ग्रह राहु के सम्मुख होने की वजह से केतु के शुभ अशुभ दोनो ही परिणाम जीवन में देखने को मिलते है। यदि जन्म कुंडली में केतु 1, 2,3,5,8,9 तथा 12 इन भावों में बैठा हो तो जातक पूर्वाभासी अर्थात पूर्वानुमान लगाने वाला बन जाता है इस तरह के लोगो के सपने भी सच हो जाया करते हैं। यदि जन्म कुंडली में केतु के साथ गुरु की युति हो तो फिर कहना ही क्या यह एक प्रकार का योग जिसे धर्म ध्वजा योग कहते है इसका निर्माण करेगा इससे जातक की कही हुई बात सच हो जाया करती है । इस प्रकार के योग अक्सर साधु सन्यासी की कुंडली में खूब देखने को मिलते है । यदि कुंडली में गुरु केतु की युति हो तो जातक को धार्मिक प्रवृत्ति का बना देते है । यदि जातक गुरु और बड़ों का सम्मान करे तो जातक के पूर्वानुमान में और वृद्धि होती है । जातक यदि अत्यधिक धार्मिक हो जाए और मंत्र साधना करे तो इस तरह के लोगो को शीघ्र ही सिद्धि प्राप्त हो जाती है। जातक त्रिकालज्ञ अर्थात तीनों कालों के विषय म